उत्तराखंड कांग्रेस को एक बड़ा झटका लगा है। कांग्रेस की दिग्गज नेता एवं नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश का रविवार की सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है। उत्तरप्रदेश से अपनी राजनीतिक सफर शुरू करने वाली नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश को उत्तराखंड राजनीति में आयरन लेडी के नाम से प्रसिद्ध थी। मिली जानकारी के अनुसार, दिल्ली के उत्तराखंड भवन में उन्होंने आखिरी सांस ली। दिल्ली में होने वाली कांग्रेस की बैठक में हिस्सा लेने के लिए वह शनिवार को दिल्ली पहुंची थीं।
नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद राजनीतिक जगत में शोक की लहर है। हालांकि, उत्तराखंड सरकार ने एक दिन का राजकीय रखा है। इंदिरा हृदयेश का अंतिम संस्कार सोमवार की सुबह 11 बजे रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट पर किया जाएगा। इस दौरान भाजपा-कांग्रेस के कई नेता, मंत्री और विधायक यहां मौजूद रहेंगे। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उनके निधन पर दुःख प्रकट किया है। सीएम तीरथ सिंह रावत ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष ने हमेशा उत्तराखंड के जनहित मुद्दों को सदन में उठाया है।
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प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी ने व्यक्त किया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इंदिरा हृदयेश के निधन पर दुख जताया है। पीएम ने ट्वीट करके लिखा, डॉ. इंदिरा हृदयेश जी कई सामुदायिक सेवा प्रयासों में सबसे आगे थीं। उन्होंने एक प्रभावी विधायक के रूप में अपनी पहचान बनाई और उनके पास समृद्ध प्रशासनिक अनुभव भी था। उनके निधन से दुखी हूं। उनके परिवार और समर्थकों के प्रति संवेदना है। तो वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने भी इंदिरा हृदयेश के निधन पर शोक जाहिर किया है। कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि उत्तराखंड में कांग्रेस पार्टी की एक मज़बूत कड़ी, डॉ इंदिरा हृदयेश जी के निधन का दुखद समाचार मिला। वे अंत तक जन सेवा एवं कांग्रेस परिवार के लिए कार्यरत रहीं। उनके सामाजिक व राजनीतिक योगदान प्रेरणास्रोत हैं। उनके प्रियजनों को शोक संवेदनाएं।
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उत्तरप्रदेश के अयोध्या में पैदा हुई थी आयरन लेडी
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 7 अप्रैल 1941 को जन्मीं इंदिरा हृदयेश का राजनीतिक सफर काफी शानदार रहा है। उत्तराखंड में उनकी पहचान कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में थी। 80 वर्ष के उम्र में नेता प्रतिपक्ष का निधन रविवार (13 जून, 2021) को दिल्ली में दिल का दौरा पड़ने से हो गया। डॉ इंदिरा हृदयेश उत्तराखंड की राजनीति में कद्दावर नेता मानी जातीं थीं। उनको उत्तराखंड की ‘आयरन लेडी’ भी कहा जाता था। उन्होंने स्नातकोत्तर (हिंदी एवं राजनीतिक विज्ञान) में पीएचडी की थी। इंदिरा का विवाह 13 अक्टूबर 1967 में हुआ।
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इंदिरा का राजनीतिक सफर
इंदिरा हृदयेश साल 1974 में पहली बार गढ़वाल कुमाऊं शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से उत्तरप्रदेश विधान परिषद की सदस्य निर्वाचित हुईं। इसके बाद साल 1986, 1992 और फिर 1998 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुईं। उत्तर प्रदेश विधान परिषद में इतिहास में सर्वाधिक मतों से जीतने वाली महिला होने का रिकॉर्ड भी उनके नाम दर्ज है। इसके बाद साल 2002 से 2012 और साल 2017 के आम चुनाव में उत्तराखंड विधानसभा की सदस्य निर्वाचित हुईं। साल 2012 से 2017 तक उत्तराखंड सरकार में वित्त, वाणिज्य कर, स्टाफ एवं निबंध संसदीय कार्य निर्वाचन जनगणना भाषा एवं प्रोटोकॉल मंत्री रही हैं। वर्तमान समय में उत्तराखंड विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष थी।
इंदिरा ने दी थी हरीश रावत को चुनौती
उत्तराखंड की आयरन लेडी इंदिरा हृदयेश भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनके कामों से जुड़ी कई यादें हमारे बीच मौजूद हैं। इन्ही में हल्द्वानी अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम से जुड़ा वो किस्सा भी है, जिसमें उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को भी चुनौती दे दी थी। दरअसल, इंदिरा हृदेश हल्द्वानी में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम के निर्माण के जरिए कुमाऊं क्षेत्र में खेल को लेकर बेहतर माहौल तैयार करना चाहती थीं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत स्टेडियम बनाए जाने के पक्ष में नहीं थे। वह स्टेडियम से जुड़ी फाइल पर साइन नहीं कर रहे थे। इसके बाद इंदिरा हृदयेश ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के सामने ही फाइल को हटाकर दो टूक कहा कि भले ही हरीश जी आप इस स्टेडियम को ना बनवाएं, लेकिन मैं कहीं से भी इस स्टेडियम को बनवा कर ही रहूंगी।
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इंदिरा की सीएम बनने की इच्छा रह गयी अधूरी
इंदिरा हृदयेश का सपना था कि वह एक बार मुख्यमंत्री जरूर बनें। हालांकि, इसके लिए इंदिरा हृदयेश ने कई बार हाथ पैर मारे लेकिन उनको सीएम के सत्ता का सुख नसीब नही हो पाया। कांग्रेस पार्टी के लिए पूरा राजनीतिक जीवन समर्पित करने वाली डॉ. हृदयेश के मुख्यमंत्री न बन पाने का मलाल हमेशा से उनकी बातों और चेहरे पर साफ झलकता रहा। साल 2012 में जब नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के मुख्यमंत्री बनने का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, तो उस दौरान कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश के समीकरण को देखते हुए विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी। हालांकि, इसके बाद चर्चाएं फिर चलनी शुरू हो गई थी कि कांग्रेस के इस कार्यकाल के दौरान नेतृत्व परिवर्तन किया जाएगा और इंदिरा हृदयेश को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। लेकिन ऐसा ना हो सका और हरीश रावत ने बाजी मार ली।