साल 2013 में केदार घाटी में आई भीषण आपदा को आज 8 साल पूरे हो गए हैं। हालांकि, इन 8 सालों के भीतर केदारघाटी न सिर्फ अपने पुराने स्वरूप में वापस आ गई है बल्कि पहले से ज्यादा भव्य और सुंदर हो गई है। केदारघाटी, साल 2013 में आयी आपदा का ही दंश नहीं झेला है, बल्कि सैकड़ों साल पहले भी केदारघाटी में दैवीय आपदा आ चुकी है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ घाटी में साल 2013 में आई त्रासदी से यू तो पूरी केदारघाटी तहस-नहस हो गई, लेकिन बाबा केदारनाथ का मंदिर जस का तस बना रहा। हालांकि केदारनाथ मंदिर पर यह पहली विपदा नहीं थी जब 2013 में देवीय आपदा आयी थी। बल्कि इससे सैकड़ों साल पहले साल 1300 से 1700 के बीच हिम युग के दौरान केदारनाथ मंदिर पूरा बर्फ में दब गया था और सैकड़ों सालों तक केदारनाथ मंदिर बर्फ में दबा रहा, बावजूद इसके मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ था।
केदारघाटी में 1300 से 1700 तक था हिमयुग….
साल 1300 से 1700 तक हिमयुग का दौर आया था और उस दौरान हिमालय का कुछ क्षेत्र बर्फ से ढक गया था, वैज्ञानिकों की माने तो पूरे 400 साल तक केदारनाथ मंदिर बर्फ में दबा रहा था फिर भी इस मंदिर को कुछ नुकसान नहीं हुआ इसलिए वैज्ञानिक इस बात से भी हैरान नहीं है कि साल 2013 में आयी भीषण आपदा से मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ। बर्फ में मंदिर के दबे रहने का निशान मंदिर के बाहरी दीवारों पर आज भी मौजूद है जो निशान बर्फ की रगड़ने से बने थे।
हिमयुग आने की वजह…….
वैज्ञानिकों ने बताया कि हिमयुग के दौरान बहुत ज्यादा बर्फबारी हुई थी जिस वजह से मंदिर उस बर्फ के नीचे दब गया था। साथ ही बताया कि हिमयुग आने की वजह यह है की जब पृथ्वी ज्यादा गर्म हो जाती है तो अपने आप को ठंडा करने लगती है। तो ऐसे हिमयुग का दौर आता हैं। पृथ्वी एक लिविंग प्लानेट है क्योंकि गर्मी के मौसम के बाद फिर मानसून आता है, और इसमें पृथ्वी अपने आपको ठंडा करती है। और इसी तरह ही साल 1300 से 1700 में पृथ्वी ने अपने आप को ठंडा किया था, लेकिन टेंपरेचर इतना गिर गया कि सैकड़ों साल तक वहां पर बर्फबारी होती रही।
टेस्ट से समय का लगाया गया पता….
वैज्ञानिकों ने बताया कि शैवाल और कवक को मिलाकर समय का भी अनुमान लगाया गया था इसके अनुसार केदारनाथ इलाके में बर्फ गिरना 13वीं शताब्दी के मध्य शुरू हुआ था और इस केदारघाटी में बर्फ का बनना 1748 ईस्वी तक जारी रहा। वैज्ञानिकों ने बताया की लाखो साल पहले केदारनाथ घाटी बनी है हालांकि जो मंदिर बनाया गया वह बेहद सुरक्षित है क्योंकि वह जगह बेहद ही संवेदनशील है इसलिए मंदिर को कुछ नहीं हुआ, लेकिन उस दौरान ऐसे संवेदनशील जगह पर आबादी बसाना खतरे से खाली नहीं था।
केदारनाथ मंदिर की मान्यताएं…..
उत्तराखंड के चारों धामों में से सबसे कठिन धाम माने जाने वाले बाबा केदारनाथ कि अपनी कई अलग-अलग मान्यताएं हैं। माना जाता है कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 1076 से 1099 तक राज करने वाले मालवा के राजा भोज ने बनवाया था लेकिन वहीं कुछ लोगों का मानना है कि आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर को बनवाया था। तो वही पौराणिक कथाओं के अनुसार केदारनाथ धाम का वर्णन महाभारत में भी है। महाभारत युद्ध के बाद पांचो पांडवो ने केदारनाथ में भगवान शंकर की पूजा की थी।
केदारनाथ मंदिर है बेहद मजबूत…..
केदारनाथ मंदिर को बेहद मजबूती से बनाया गया है क्योंकि मोटी-मोटी चट्टानों से केदारनाथ मंदिर की दीवारें पति हैं। 50 फीट ऊंची, 187 फीट लंबी, 80 फीट चौड़ी और इसकी दीवारें 12 फीट मोटी है जो कि बेहद मजबूत चट्टानों से बनाई गई हैं। मंदिर को 6 फीट नीचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है, और माना जा रहा है कि पत्थरों को आपस में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीकी का इस्तेमाल किया गया होगा। जो इतने संवेदनशील जगह पर मजबूती से खड़े रहने में कामयाब हुई।
तीन पहाड़ों से घिरा हुआ है केदारनाथ…..
उत्तराखंड स्थित केदारनाथ मंदिर तीनों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है एक तरफ 22 हज़ार फुट ऊंचा केदारनाथ, तो दूसरी तरफ 21,600 फीट ऊंचा खर्चकुण्ड और तीसरी तरफ 22,750 फिट ऊंचा भरतकुंड पहाड़ है। केदारनाथ मंदिर ना सिर्फ पहाड़ों से घिरा हुआ है बल्कि यहा पांच नदियों के संगम भी हैं यहां मंदाकिनी, मधुगंगा, छीरगंगा, सरस्वती और स्वर्ण गौरी है, लेकिन यहां बस मंदाकिनी ही शुद्ध रूप से दिखाई देती है।
इन 8 सालों के भीतर केदारघाटी में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यो के करीब 90 फीसदी कार्य पूरा हो चुके है। हालांकि केदारनाथ में चल रहे पुनर्निर्माण के कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार है। जिसके तहत केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे 390 मीटर सुरक्षा दीवार का निर्माण, मंदाकिनी व सरस्वती नदी पर घाट व चबूतरे का निर्माण, केदारनाथ मंदिर परिसर में चौड़ीकरण कार्य और मंदिर के सामने 200 मीटर लंबे रास्ते का निर्माण, तीर्थ पुरोहितों के घरों का निर्माण,400 मीटर लंबे अस्था पथ का निर्माण, गरुड़चट्टी को केदारनाथ से जोड़ा जाना, केदारनाथ में अत्याधुनिक सुविधायुक्त स्वास्थ्य सेवाएं शुरू, केदारनाथ धाम में सात हजार यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था जैसे कार्य पूरे किए जा चुके हैं यानी यह कह सकते हैं कि केदार घाटी अपने पुराने स्वरूप से भी बेहतर स्थिति में आ गई है।