सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी का नाम ‘माउंट एवरेस्ट’ रखा गया। उन्होंने जीवन का एक लंबा अर्सा पहाड़ों की रानी मसूरी में गुजारा था। वेल्स के इस सर्वेयर एवं जियोग्राफर ने ही पहली बार एवरेस्ट की सही ऊंचाई और लोकेशन बताई थी। इसलिए ब्रिटिश सर्वेक्षक एंड्रयू वॉ की सिफारिश पर वर्ष 1865 में इस शिखर का नामकरण उनके नाम पर हुआ। इससे पहले इस चोटी को ‘पीक-15’ नाम से जाना जाता था।
पहाड़ों की रानी मसूरी, हाथीपांव के समीप स्थित 172 एकड़ के बीचों बीच बने सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस और इससे लगभग 50 मीटर दूरी पर स्थित प्रयोगशाला का जीर्णोद्धार का कार्य अनलॉक के बाद प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने 18 जनवरी 2019 को प्रारम्भ करवाया था। 23 करोड़ 69 लाख 47 हजार रुपये की लागत से सर जॉर्ज एवरेस्ट समेत उसके आसपास के क्षेत्र के जीर्णोद्धार का काम तभी से लगातार चल रहा है।
उत्तराखंड पर्यटन संरचना विकास निवेश कार्यक्रम के तहत एशियन डेवलपमेंट बैंक की तरफ से वित्त पोषित योजना के तहत किये गये सर जॉर्ज एवरेस्ट हेरिटेज हाऊस के पूर्ण हो चुके जीर्णोद्वार कार्य का लोकार्पण 7 दिसम्बर को प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज द्वारा किया जायेगा। मसूरी स्थित ऐतिहासिक सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस जो कि पूर्व में बेहद खस्ता हालत में था। जिसका जीर्णोद्धार कर इसे मूल स्वरूप को बरकरार रखते हुए अंग्रेजों की तर्ज पर सीमेंट की जगह चक्की में पीस कर बनाए गए मिश्रण से दोबारा बनाया गया है। इसके जीर्णोद्धार में चक्की में चूना, सुर्खी, मेथी और उड़द की दाल को पानी के साथ पीसकर सीमेंट जैसा लेप बना कर लाहौरी ईंटों का प्रयोग किया गया है।
उत्तराखंड के परंपरागत लकड़ी के घर, दशकों बाद आज भी वैसे ही मजबूत रहते हैं। जॉर्ज एवरेस्ट पर बनाए गए प्रतीक्षालय यहाँ आने वाले पर्यटकों को बेहतर और आनंदमय अनुभव दे रहे हैं। साथ ही पर्यटकों को बेहतर सुविधा देने के लिए जगह-जगह सूचना पट लगाए गए हैं। दिन प्रतिदिन जॉर्ज एवरेस्ट पर पर्यटकों के बढ़ते दबाव को देखते हुए बुम बैरियर के पास पार्किंग स्थल बनाने के साथ रिसेप्शन काउंटर भी बनाया गया है। जहां से पर्यटकों को जॉर्ज एवरेस्ट से संबंधित सभी जानकारियां आसानी से उपलब्ध कराई जा रही है।