उत्तराखंड राज्य में कई हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट मौजूद है जहां से बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। एशिया के सबसे बड़े डैम में शुमार टिहरी डैम उत्तराखंड राज्य में ही स्थित है। हालांकि, टिहरी डैम से मीथेन गैस निकलने का दावा वैज्ञानिक कई बार कर चुके है। लेकिन अभी इसकी पुष्टि नही हो पाई है कि डैम से किस मात्रा ने मीथेन गैस रिलीज हो रहा है। लेकिन अब डैम से निकलने वाले मीथेन गैस की असल जानकारी प्राप्त हो सकेगी। क्योकि वाडिया इंस्टीट्यूट ने देश का पहला उपकरण खरीद लिया है। जिसके माध्यम से वाडिया इंस्टिट्यूट, डैम से निकलने वाले मीथेन की जानकारी एकत्र कर सकेगी।
टिहरी बांध दुनिया के पांचवे नंबर का सबसे गहरा और मानव निर्मित लेख है। जो 2400 मेगावाट बिजली प्रोड्यूस कर सकती है। यही नही, दुनियाभर में जितने भी मानव निर्मित बांध हैं, उन बांधो से बहुत ज्यादा में मात्रा मीथेन गैस निकल रहा है। और इन बांधो में से निकलने वाले मीथेन गैस को रोकना हमेशा से ही एक बड़ा सवाल है। क्योकि ये गैस ना सिर्फ वातावरण के लिए बहुत हानिकारक है बल्कि वातावरण के टेंपरेचर को भी बढ़ाती है। इसी तरह टिहरी बांध के सराउंडिंग का जो टेंपरेचर है और टिहरी बांध का जो टेंपरेचर है उसमें एक से 2 डिग्री तक का हमेशा फर्क रहता है।
क्या है ट्रेस गैस एनालाइजर उपकरण………
अब वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक, डैम से निकलने वाले मीथेन गैस की असल स्थिति का अध्ययन करने जा रहे हैं। इसके लिए वाडिया इंस्टीट्यूट ने ट्रेस गैस एनालाइजर (Trace Gas Analyzer) इक्विपमेंट खरीद लिया है। जो देश का पहला उपकरण है, जिसके माध्यम से टिहरी डैम समेत अन्य डैम से निकलने वाले मीथेन गैस का अध्ययन किया जाएगा। ताकि यह पता लगाया जा सके कि किस डैम से किस मात्रा में मीथेन गैस निकल रहा है। हालांकि, इस उपकरण की कीमत करीब एक करोड़ रुपये बतायी जा रही है। यही नही, ऐसा ही एक उपकरण देहरादून स्थित फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ने भी खरीदा है।
ट्रेस गैस एनालाइजर का क्या-क्या है फायदा……
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ समीर के तिवारी ने बताया कि वर्तमान समय में वादिया इंस्टीट्यूट पर्यावरण का अध्ययन कर रहा है। जिसके तहत हिमालयी क्षेत्रों में ग्रीनहाउस गैसेस की क्या मात्रा है इसको जानने के लिए ट्रेस गैस एनालाइजर को खरीदा है। हालांकि, यह उपकरण काफी आधुनिक तकनीकों से लैस है, साथ ही इसे कैरी करना भी बहुत आसान है। इस उपकरण के माध्यम से मुख्य रूप से हिमालयी क्षेत्रों में मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड गैस की मात्रा का पता लगाया जाएगा। इसके अतिरिक्त जितने भी बांध मौजूद हैं उन सभी बांधो से किस मात्रा में मीथेन गैस उत्सर्जित हो रहा है इसका भी आकलन किया जाएगा।
क्या है मीथेन गैस…….
मीथेन एक ग्रीनहाउस गैस है। अगर मीथेन गैस, किसी कारण से पर्यावरण में चला जाता है तो वह कार्बन डाई ऑक्साइड से करीब 20 से 60 गुना अधिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगा। यानी मिथेन गैस, कार्बन डाइऑक्साइड से 60 गुना ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग के लिए पोटेंशियल है। और ग्लोबल वार्मिंग का एक बड़ा कारण मीथेन गैस हैं। हालांकि, वर्तमान समय में मौजूद नेचुरल गैस से करीब 1500 गुना अधिक मीथेन गैस, गैस हाइड्रेट के रूप में मौजूद है।
डैम में कहा से आता है मीथेन गैस……
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ समीर के तिवारी ने बताया कि अगर किसी भी कार्बनिक पदार्थों के अपघटन (Organic matter decomposition) की वजह से मीथेन गैस निकलता है। लिहाजा जब किसी क्षेत्र में बाढ़, आपका जैसी स्थिति या भारी बारिश होती है तो बायोमास अपने साथ लेकर के आता है। जो डैम में डंप हो जाता है। लेकिन कुछ महीनों या सालों बाद वह डीकंपोज होना शुरू हो जाता है। जिसे मीथेन गैस निकाले लगता है। मीथेन गैस, डैम से छोटे-छोटे बुलबुले के रूप में निकलती है, और वो छोटे-छोटे बुलबुले, जब पानी के सतह पर आते है तो ब्लास्ट होते है। जिससे मीथेन गैस वातावरण में चला जाता है। जितना बड़ा डैम होगा, उतना ज्यादा मीथेन गैस निकलेगा।
डैम के क्षेत्र में बादल फटने की घटना पर शोध जारी….
ग्लोबल वार्मिंग का एक बड़ा कारण मीथेन गैस हैं। जिससे सामान्य बादल बनता है और बादल फटने की घटना का मुख्य कारण होता हो सकता है। जिस पर शोध चल रहा है। और जो सामान्य दिनों में बादल फटने की घटना होती है, या अचानक से ज्यादा बारिश हो जाती है। वो भी इसी का ही असर होता है। वाडिया के वैज्ञानिक डॉ समीर के तिवारी ने बताया कि अगर मीथेन गैस उस बांध से निकल रहा है, तो उसके आस-पास का तापमान भी बढ़ेगा। क्योंकि मीथेन गैस, सोलर रेडिएशन को ऑब्जर्वर करती है और वह के तापमान को बढ़ाती है। और जब उस क्षेत्र का तापमान बढ़ता है तो वो बादल को आकर्षित करते हैं। जिसकी वजह से भारी बारिश या बादल फटने की घटनाएं होती है। लेकिन इस पर अभी शोध किया जा रहा है कि ताकि भारी से भारी बारिश और बादल फटने की घटना में डैम के रोल का पता किया जा सके।