आलिशान बंगला न्यारा, किसी CM को नहीं प्यारा? ये बंगला कुर्सी खाता है!

उत्तराखंड की राजनीति में मुख्यमंत्री आवास को लेकर एक बड़ा मिथक जुड़ा हुआ है। मिथक यह है कि मुख्यमंत्री आवास में अपशकुन है। यही नही, यहाँ आज तक जो भी मुख्यमंत्री रहा है वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है। देहरादून की वादियों में करोड़ों रुपए की लागत से पहाड़ी शैली में बना उत्तराखंड मुख्यमंत्री आवास अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है।

इस बंगले से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि इस बंगले में जो भी मुख्यमंत्री रहा है उसने कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है. यानी उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद तीरथ सिंह रावत ने इस बंगले से दूरी बना ली है. सीएम तीरथ मुख्यमंत्री आवास को छोड़ अपने ही निजी आवास से सभी सरकारी कार्यों को पूरा कर रहे हैं. इस दौरान करोड़ों की लागत से बना मुख्यमंत्री आवास खाली पड़ा है।

पहाड़ी शैली से बनाया गया है मुख्यमंत्री आवास……..

देहरादून राजधानी में मुख्यमंत्री का आवास बेहद शानदार क्षेत्र में बना हुआ है. घर के दो बड़े दरवाजे हैं, जिसे पहाड़ी शैली से बनाया गया है. मुख्य दरवाजे के अंदर दाखिल होते हुए बड़ा सा बगीचा है. जिसमें तरह-तरह के महंगे पेड़ पौधे और पाम के पेड़ लगे हुए हैं। पहाड़ी शैली से मुख्य दरवाजे के बाद मुख्य बिल्डिंग बनी हुई है. महंगी लकड़ियों से खिड़की और दरवाजे बनाए गए हैं. अंदर दाखिल होते हुए चमचमाती टहल और राजस्थानी पत्थरों से किए गए काम नजर आते हैं. मुख्यमंत्री के दफ्तर को बेहद शानदार तरीके से बनाया गया है. दफ्तर के अलावा मुख्यमंत्री के घर में भी दो बड़े-बड़े ऑफिस हैं, जहां पर बैठकर के मुख्यमंत्री अपने काम देखते हैं। पब्लिक के लिए एक बड़ा हॉल है, जहां पर सोफे और कुर्सियां रखी हुई हैं. घर के बैक साइड में ही मुख्यमंत्री का दफ्तर है.

हरीश रावत ने अंधविश्वास को बढ़ावा था दिया………

दरअसल, 10 मार्च 2021 को तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. लेकिन 81 दिन बीत जाने के बाद भी उन्होंने मुख्यमंत्री आवास में जाने के बजाय से हाउस और अपने निजी आवास पर रहना ही मुनासिब समझा। यह खौफ ही है कि तीरथ सिंह रावत ने कभी इस आवास पर जाने की सोची भी नहीं। वैसे यह पहली बार नहीं है जब किसी मुख्यमंत्री ने करोड़ों के आलीशान मुख्यमंत्री आवास को यू त्याग दिया हो। हरीश रावत भी उन्हीं मुख्यमंत्रियों में शामिल है. जिन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अपने निजी आवास में रहकर अंधविश्वास को बढ़ावा दिया. हरीश रावत के लिए तो यह भी कहा गया कि वे चावलों की मुट्ठी लिए विधानसभा के बाहर विधायकों का इंतजार करते दिखाई दिए।

बीसी खंडूड़ी नही पूरा कर पाए थे अपना कार्यकाल……

गढ़ी कैंट में राजभवन के बराबर में बने मुख्यमंत्री आवास का निर्माणकार्य तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार में हुआ था. हालांकि, जबतक मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य पूरा होता उसके पहले ही उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया. इसके बाद 2007 में बीजेपी की सरकार बनी और प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर बीसी खंडूड़ी को मिली. अधूरे बंगले को खंडूड़ी ने दिलो जान से तैयार कराया. मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने ही इस बंगले का उद्धाटन किया. लेकिन वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. ढाई साल बाद ही कुर्सी उनके नीचे से खिसक गई.

रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ पूरा नही कर पाए अपना कार्यकाल……

इसके बाद बीजेपी हाई कमान ने उत्तराखंड की सत्ता डॉ. रमेश पोखियाल निशंक को सौंपी. मुख्यमंत्री बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री निशंक ने भी अपनी सत्ता इस बंगले से चलाई. लेकिन 2012 के चुनाव से ठीक छह महीने पहले ही हरिद्वार कुंभ घोटाले के आरोप में घिरे निशंक को सत्ता छोड़नी पड़ी. बीजेपी हाईकमान ने उनसे सत्ता की चाभी ले ली और प्रदेश की कमान एक बार फिर बीसी खंडूड़ी के हाथों में चली गई. यानी निशंक भी इस बंगले में रहते हुए अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए.

विजय बहुगुणा के कार्यकाल पर भी दिखा आवास से जुड़ा मिथक का असर………..

इसके बाद कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया. मुख्यमंत्री पद पर अपनी ताजपोशी करवाने के बाद विजय बहुगुणा इसी आवास में रहने लगे. लेकिन दो साल बाद सत्ता ने फिर से पलटी मारी और विजय बहुगुणा भी सत्ता से बेआबरू होकर हटाये गए. वो इस बंगले में रहते हुए अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और सत्ता हरीश रावत के हाथों में आ गई. हालांकि, हरदा कभी इस बगले में नहीं रहे, लेकिन 2017 में उनके नेतृत्व में कांग्रेस भी हार गई थी.

त्रिवेंद्र सिंह रावत भी नही तोड़ पाए मिथक को……

इसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने और उन्होंने अंधविश्वास को चुनौती देते हुए मुख्यमंत्री आवास में कदम रखा और मुख्यमंत्री के रूप में कामकाज शुरू किया, लेकिन वह भी इस मिथक को नहीं तोड़ पाए और अमित शाह जैसे दिग्गज नेता के करीबी होने के बावजूद भी उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी. अब तीरथ सिंह रावत इस पद पर आए हैं. लेकिन उन्होंने तो इस आवास के पुराने इतिहास को भांपकर यहां न जाने का फैसला ले लिया है.

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